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राखी पर आज का मेरा अनुभव

allahabadlive
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राखी——

सभी राखी पर बडे बडे लेख लिखते है पर ये है मेरा अपना लम्हा जो आप सभी के साथ बाट रही हु ——
बचपन मे जब कलाई पर रेशम की डोर बांधती थी तो एहसास ही नहीं था की कभी भाई से दूर भी जाउंगी

माँ थाली लेकर हमे बुलाती थी हम आपस मे दिनभर लड़ते ज्यादा थे ये बात और थी की यदि मे नाराज हो गयी तो भाई बिना मुझे मनाये चैन नहीं पाते थे
माँ कभी हमारे झगडे मे नहीं पड़ती थी कहती थी दोनों लड़े तो दोनों ही आपस मे सुलह करो

आज भाई चले गए बाहर उनको फ़ोन आया पर घर मे जसे रौनक नहीं हमने प्लान किया इन्टरनेट के जरिये राखी बंधेंगे भाई ने फेसबुक ओन की और हमने भी की हमने कहा भाई टीका लगाइए उन्होंने लगाया फिर हमने कहा राखी पहनिए उन्होंने पहनी और फिर ………

इस तरह आज इन्टरनेट की दुनिया ने हमे अपने भाई के एकदम करीब ल दिया खास कर विडियो चैट और वौइस् चैट ने

यू तो कमी सी एक है फिर भी इस नये युग और तकनीक ने हमे एक पावदान आगे बढाया है

राखी पर आज का मेरा अनुभव और इस नयी दुनिया का धन्यवाद

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