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तेरे बगैर मुकमल मै नहीं हो सकता

allahabadlive
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बड़ी सादगी बड़े सलीके से कम लिया जाता है
दिया जला के अंधेरो से इतेफाक किया जाता है
हमने जब ऐतबार किया सर्द रात मे
सूरज उदास हो गया बस इतनी सी बात पर
एक रौशनी सी फ़ैल गई कायनात मे
जब उसने अपना हाथ रखा मेरे हाथ पर
सबकी आवाज़ से आवाज़ मिलाने वाला
वक़्त पड़ने पर भी नहीं साथ निभाने वाला
घर का दरवाज़ा इस अंदाज़ से खोला उसने
मै नहीं जसे कोई और था आने वाला
हवा ये हूप ये बदल मै नहीं हो सकता
तेरी किताब का एक पन्ना मै नहीं हो सकता
मेरे बगैर मुकम्मल है दस्ता तेरी
तेरे बैगैर मुकम्माल मै नहीं हो सकता
वक़्त के साथ कमी प्यार मै आ जाती है
पूरी ताकत मेरी पतवार मै आ जाती है
जब ग़ज़ल मीर की पड़ता है पडोसी मेरा
एक नमी सी दिवार मै आ जाती है
अतुल अजनबी

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